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चत्वारिंशत्त्रिकोणे चतुरधिकसमे चक्रराजे लसन्तीं
बिंदु त्रिकोणव सुकोण दशारयुग्म् मन्वस्त्रनागदल संयुत षोडशारम्।
॥ इति श्रीत्रिपुरसुन्दरीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
Shiva utilized the ashes, and adjacent mud to again type Kama. Then, with their yogic powers, they breathed lifetime into Kama in such a way that he was animated and really capable of sadhana. As Kama ongoing his sadhana, he gradually gained electric power above Other people. Entirely acutely aware in the potential for challenges, Shiva played together. When Shiva was asked by Kama for the boon to get 50 % of the power of his adversaries, Shiva granted it.
Her variety is alleged to be one of the most attractive in all of the three worlds, a splendor that's not simply Actual physical but also embodies the spiritual radiance of supreme consciousness. She is usually depicted being a resplendent sixteen-12 months-previous Female, symbolizing Everlasting youth and vigor.
श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् click here ॥६॥
Hence the many gods asked for Kamadeva, the god of love to create Shiva and Parvati get married to each other.
सा नित्यं नादरूपा त्रिभुवनजननी मोदमाविष्करोतु ॥२॥
कामाकर्षिणी कादिभिः स्वर-दले गुप्ताभिधाभिः सदा ।
ह्रीङ्कारं परमं जपद्भिरनिशं मित्रेश-नाथादिभिः
यह देवी अत्यंत सुन्दर रूप वाली सोलह वर्षीय युवती के रूप में विद्यमान हैं। जो तीनों लोकों (स्वर्ग, पाताल तथा पृथ्वी) में सर्वाधिक सुन्दर, मनोहर, चिर यौवन वाली हैं। जो आज भी यौवनावस्था धारण किये हुए है, तथा सोलह कला से पूर्ण सम्पन्न है। सोलह अंक जोकि पूर्णतः का प्रतीक है। सोलह की संख्या में प्रत्येक तत्व पूर्ण माना जाता हैं।
श्रीगुहान्वयसौवर्णदीपिका दिशतु श्रियम् ॥१७॥
देवीं कुलकलोल्लोलप्रोल्लसन्तीं शिवां पराम् ॥१०॥
यह साधना करने वाला व्यक्ति स्वयं कामदेव के समान हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान्, पुत्रवान व स्त्रीप्रिय होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके अंदर एक विशेष आत्मशक्ति का विकास होता है और उसके जीवन के पाप शान्त होते है। जिस प्रकार अग्नि में कपूर तत्काल भस्म हो जाता है, उसी प्रकार महात्रिपुर सुन्दरी की साधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय हो जाता है, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसे समस्त शक्तियों के स्वामी की स्थिति प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही मनुष्यत्व से देवत्व की ओर परिवर्तित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर लेता है।